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लेखनी प्रतियोगिता -12-Jun-2023


चलो प्रियतम चलो सागर किनारे
चलो कुछ देर को लहरें निहारें
मुझे कुछ वक्त अपने साथ ले लो
कभी हम भी दो घड़ी संग गुजारें।

वो देखो शाम का घूंघट गिरा है
समंदर चांद का एक आईना है
जरा बैठो हम इनकी बात सुन लें
जगत से दूर इनका प्रेम भी कितना घना है।

जरा देखो प्रिये लहरें थिरकती आ रही हैं
समय की रेत पर ये नाचना सिखला रही हैं
कौन कितनी देर दुनिया में रुक पायेगा आखिर
यही संदेश देकर घर को वापस जा रही हैं।

वो देखो खेलती लहरों में एक छोटी सी नैया
ये तो उम्मीद का चलता हुआ एक दीप ही है
जो पानी से निकल आये तो ये मृतप्राय सा हो
ये सागर का कोई जन्मों पुराना मीत ही है।

सुनो प्रियतम मेरे जीवन के सागर भी तुम्हीं हो
तुम्हारे बिन जगत की कल्पना भी क्या करूंगी
तुम हंसे तो मेरे आनन्द की सीमा मिट गई
हर जन्म में तुमको पहचान तुमको ही वरूंगी

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6 Comments

Gunjan Kamal

14-Jun-2023 06:41 AM

👌👏

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Muskan khan

13-Jun-2023 04:44 PM

Osm

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बेहद ही शानदार रचना

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